ओडिशा: रथयात्रा की तैयारियां अंतिम पड़ाव पर हैं. इस समय भगवान जगन्नाथ श्रीमंदिर में विश्राम कर रहे हैं और आषाढ़ अमावस्या को पुरी में ‘नैनासर’ विधि की जाएगी. इस विधि में बीमारी से उठे भगवान जगन्नाथ का फिर से श्रृंगार किया जाता है, उन्हें नए कपड़े पहनाए जाते हैं. श्रृंगार दर्शन कराए जाते हैं.

इसके बाद रथयात्रा निकाली जाती है जो कि आषाढ़ शुक्ल द्वितीय तिथि को निकलती है. बीते पंद्रह दिन से भोग नहीं स्वीकार रहे भगवान को रथयात्रा की समाप्ति के बाद जब फिर से श्रीमंदिर में स्थापित कर दिया जाता है तो उसके बाद ही ‘महाभोग और महा प्रसाद’ की परंपरा फिर से वर्ष भर के लिए शुरू हो जाती है. श्रद्धालु पहले की तरह भगवान जगन्नाथ के दर्शन श्रीमंदिर में कर सकते हैं.

भगवान के ‘महाभोग’ के महाप्रसाद बनने की कथा जितनी रोचक है, उतने ही रोचक हैं इसमें शामिल स्वादिष्ट व्यंजन. महाप्रभु को 56 भोग लगाया जाता है. जिसमें कई सारे व्यंजन और खाद्य पदार्थ शामिल हैं. व्यंजन के आधार पर श्रीमंदिर में इसे तीन भागों में बांटा गया है. स्थानीय भाषा में इसे सकुंडी महाप्रसाद, शुखिला महाप्रसाद और निर्माल्य के रूप में जाना जाता है. 

सकुंडी महाप्रसादः इसे एक तरीके से पूरी तरह पका हुआ ताजा भोजन समझ सकते हैं. इसमें भात, खेचड़ी भात, पखाला, मीठी दाल, सब्जियों की करी, अदरक-जीरा मिले चावल, सूखी सब्जियां, दलिया आदि शामिल होते हैं. श्रीमंदिर की रसोई में बड़ी संख्या में रसोइये इसका निर्माण करते हैं.

अभी जगन्नाथ जी ने दो कौर खिचड़ी ही खाई थी कि श्रीमंदिर में दोपहर के भोग का आह्वान हो गया. वह वहां पहुंच नहीं सके. श्रीमंदिर में एक और परंपरा है कि भोग अर्पण के बाद जल में प्रभु को मुख दिखाया जाता है, जब वह परछायी दिखती है, तो इसे मान लेते हैं कि उन्होंने भोग स्वीकार कर लिया है.