भारत में 6 वर्ष की आयु के लगभग 23% बच्चे सुनने की क्षमता में कमी से परेशान हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, लाइफस्टाइल की समस्या और हमारी कुछ गड़बड़ आदतों के कारण कानों की सेहत भी प्रभावित हो रही है। ध्वनि प्रदूषण और इयरफोन्स का लगातार उपयोग हमारी सुनने की क्षमता के लिए दो सबसे बड़े खतरे हैं।
कम सुनाई देने या बहरेपन की समस्या आपके जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाली हो सकती है, जिसके बारे में सभी उम्र के लोगों को ध्यान देते रहना जरूरी है। उम्र बढ़ने के साथ सुनने की क्षमता कम होना आम है, हालांकि आश्चर्यजनक रूप से पिछले कुछ वर्षों में कम उम्र के लोगों में भी ये दिक्कत तेजी से बढ़ती जा रही है।
आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में 6 वर्ष की आयु के लगभग 23% बच्चे सुनने की क्षमता में कमी से परेशान हैं। जिसका मतलब है कि 100 में से एक-दो बच्चों को किसी न किसी प्रकार की श्रवण से संबंधित समस्या हो सकती है।
दुनियाभर में तेजी से बढ़ती सुनने की क्षमता में कमी और बहरेपन की समस्या की रोकथाम के बारे में जागरूकता बढ़ाने और कानों की सेहत का कैसे ध्यान रखा जाए, इस बारे में लोगों को अलर्ट करने के लिए हर साल तीन मार्च को विश्व श्रवण दिवस मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस साल वर्ल्ड हियरिंग डे के लिए थीम रखा है- मानसिकता में बदलाव: कान और श्रवण देखभाल के लिए खुद को बनाएं सशक्त।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, हमारी गड़बड़ दिनचर्या के कारण कानों की सेहत भी प्रभावित हो रही है। ध्वनि प्रदूषण और इयरफोन्स का लगातार उपयोग हमारी सुनने की क्षमता के लिए दो सबसे बड़े खतरे हैं। ज्यादातर लोगों को यह एहसास नहीं होता कि ट्रैफ्रिक की आवाज, तेज संगीत और इयरफोन का लंबे समय तक इस्तेमाल हमारी सुनने की क्षमता को हमेशा के लिए नुकसान पहुंचा रही है।
कम उम्र के लोग भी हो रहे हैं इसका शिकार
स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, कम सुनाई देना सभी उम्र के लोगों में देखी जा रही एक आम समस्या है। इसके लिए कई कारण जैसे उम्र, शारीरिक स्थिति, पर्यावरणीय प्रभाव और आनुवांशिक कारक जिम्मेदार हो सकते हैं। शोध से पता चलता है कि लगभग 40% बच्चों में जन्मजात सुनने की कमी का कारण आनुवंशिक होता है। गर्भावस्था के दौरान रुबेला या सिफलिस जैसे संक्रमण के कारण बच्चों पर इसका असर हो सकता है।
इसके अलावा लगभग 60% लोग 60 वर्ष की आयु के बाद सुनने की समस्या से पीड़ित हो जाते हैं। हालांकि कम उम्र में बढ़ती इस समस्या के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार माना जाता है उनमें लंबे समय तक तेज आवाज (85 डेसिबल से अधिक) में इयरफोन्स का इस्तेमाल प्रमुख है।
आइए जानते हैं सुनने के क्षमता को ठीक रखने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?
इयरफोन या तेज आवाज से बचाव सबसे जरूरी
ईयरबड्स या हेडफोन्स का इस्तेमाल करने वाले लगभग 65 प्रतिशत लोग लगातार 85 (डेसिबल) से ज्यादा तेज आवाज में इसे प्रयोग में लाते हैं। इतनी तीव्रता वाली आवाज को कानों के आंतरिक हिस्से के लिए काफी हानिकारक पाया गया है, जो कम उम्र के लोगों को भी बहरा बनाती जा रही है।
सामान्य लोगों के लिए 25-30 डेसीबल ध्वनि को पर्याप्त माना जाता है, जबकि 80-90 डेसीबल ध्वनि श्रवण शक्ति को स्थायी हानि पहुंचाने वाली हो सकती है। सभी लोगों को इसका गंभीरता से ध्यान रखना चाहिए।
तुरंत छोड़ दें ये दो आदतें
जीवनशैली के कई कारक भी आपके सुनने की क्षमता को प्रभावित करने वाले हो सकते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि धूम्रपान और शराब के सेवन की आदत कानों की सेहत को प्रभावित कर रही है। अत्यधिक शराब का सेवन आंतरिक कान में नाजुक कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है। इसी तरह धूम्रपान से भी सुनने की क्षमता में कमी आने का खतरा बढ़ जाता है।
सिगरेट के धुएं में मौजूद विषाक्त पदार्थ आंतरिक कान की नाजुक रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाने लगते हैं, जिससे गंभीर समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है।
कान की स्वच्छता का ध्यान रखें
शरीर के अन्य अंगों की तरह, कानों को भी नियमित देखभाल की आवश्यकता होती है। कानों को नम कपड़े से धीरे से साफ करें। यदि आपके कान में अत्यधिक मोम जमा हो गया है, तो किसी पेशेवर से सलाह लें। कानों की साफ-सफाई का ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण है।
नियमित जांच करवाएं
बॉडी टेस्ट की तरह ही कानों की भी नियमित जांच करवाएं। विशेषकर यदि आपकी सुनने की क्षमता कम हो रही है, तो समस्याओं का जल्द पता लगाने में इससे मदद मिल सकती है। ऑडियोलॉजिस्ट या अन्य पेशेवर से मिलें और दो साल में एक बार कानों की जांच जरूर कराएं। इससे किसी संभावित समस्या को जल्द पकड़ने और उसे ठीक करने की संभावना बढ़ सकती है।