कतरास/झारखण्ड : डीएमएफटी फण्ड से जिले में होने वाले कार्य अक्सर चर्चा में रहते हैं. इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि डीएमएफटी फण्ड का उपयोग वैसे स्थानों में किया जा रहा है जहां उसका आवश्यकता ही नही है.
क्षेत्र के जनप्रतिनिधि भी इस बात पर ज्यादा दिमाग लगाना उचित नही समझते है कि जिस स्थान पर डीएमएफटी फण्ड के उपयोग किया जा रहा है वो वहां के स्थानीय ग्रामीणों के लिए उपयोगी साबित होगा या नही.
धनबाद जिले के बाघमारा प्रखण्ड अंतर्गत जमुआटाँड़ पंचायत के खमारगोड़ा बस्ती में कतरी नदी पर बन रहे करोड़ों के पुल की कहानी भी यही है.
स्थानीय मुखिया निरंजन गोप ने भूमाफियाओं को लाभ पहुंचाने के नियत से 5 हजार की आबादी वाले पंचायत में महज 17 लोगों को लेकर आमसभा में पुल को पास को पास कर दिया. वहीं ग्रामीणों ने बिना जानकारी दिए पुल को आमसभा में पास करने तथा शिलान्यास में भी जानकारी नही देने की बात कही.
बाद में पंचायत के 35-40 लोगों ने पुल को अनुपयोगी बताते हुए और पुल बनाकर भूमाफियाओं को लाभ पहुंचाने का आरोप लगाते हुए उपायुक्त को पत्र लिखकर पुल निर्माण कार्य पर रोक लगाने की मांग की. पुल निर्माण स्थल पर एक बड़ा सा शिलान्यास बोर्ड लगा है जिसमे शिलान्यास करने वाले नेताओं और जनप्रतिनिधियों के नाम तो लिखा है लेकिन उसमें पुल बनाने की प्राक्कलित राशि लिखने की जगह नही है.
दूसरे अर्थों में हम कह सकते हैं कि प्राक्कलित राशि को छुपाया गया है. प्रैक्टिकली देखें तो आजकल किसी भी योजना में प्राक्कलित राशि को नही लिखने का दौर चल रहा है जबकि पहले ऐसा नही होता था.
हालांकि आरटीआई से प्राप्त दस्तावेजों से पता चला है कि पुल बनाने की प्राक्कलित राशि 3 करोड़ 31 लाख 41 हजार 2 सौ 57 रुपये है तथा पुल को 18 महीना में बनाकर कंप्लीट कर देना है.
वहीं शिलापट्ट में पुल का शिलान्यास करने वाले गिरिडीह लोकसभा सांसद चन्द्र प्रकाश चौधरी, बाघमारा विधायक ढुलु महतो, जिप अध्यक्षा शारदा सिंह, जिप उपाध्यक्षा सरिता देवी, जिप सदस्य-16 मो इसराफिल उर्फ लाला तथा मुखिया जमुआटाँड़ पंचायत निरंजन गोप का नाम अंकित है.
सवाल ये उठता है कि जब आम सभा में 5 प्रतिशत लोग भी उपस्थित नही हुए तो दोबारा आमसभा क्यों नही बुलाया गया? ऐसी क्या मजबूरी थी कि पंचायत के अन्य जनप्रतिनिधियों को सूचना दिए बगैर आनन फानन में मात्र 17 लोगों के द्वारा आमसभा कर निर्णय ले लिया गया.
सवाल यहाँ भी उठता है कि आम सभा मे महज 17 लोगों द्वारा योजना को पास किया गया तो क्षेत्र के सांसद, विधायक एवं जिला परिषद के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व सदस्य ने इस मामले में मंथन करना जरूरी क्यों नही समझा.
यदि उस वक़्त क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने विषय की गंभीरता को समझा होता और ग्रामीणों से पुल की उपयोगिता को लेकर चर्चा की होती तो शायद आज डीएमएफटी फण्ड का सही उपयोग होता. ग्रामीणों का कहना है कि पुल बनवाकर नदी पार के सरकारी जमीन को हड़पने की योजना है जो कि लगभग 13 एकड़ में फैला हुआ है.
भूमाफियाओं को कुछ स्थानीय जमीन दलालों का संरक्षण प्राप्त है. जिसके सहारे वे नदी किनारे की सरकारी ज़मीनों को लूटने की मंशा पाल रखें है.