World Water Day 2024:
अगर हम नहीं सचेत हुए तो झारखंड का भी हाल बेंगलुरु जैसा होने में अधिक वक्त नहीं लगेगा,धनबाद तो रेड जोन में है ही।
धनबाद: आज विश्व जल दिवस है. आज का दिन गंभीरता से यह विचार करने का दिन है कि आखिर भूगर्भीय जलस्तर इतनी तेजी से नीचे क्यों जा रहा है .आज के दिन कई कार्यक्रम होंगे ,सुझाव आएंगे, लेकिन जब अमल करने की बारी आएगी तो ईमानदार प्रयास नहीं किए जाएंगे. फागुन के दस्तक के साथ ही जल संकट शुरू हो गया है. अगर झारखंड की बात की जाए तो दो दशक में भूगर्भ जल स्तर 2 से 6 मीटर तक नीचे चला गया है. डर इस बात का है कि अगर यही स्थिति बनी रही तो हालात बेंगलुरु जैसा नहीं हो जाए. झारखंड में औसतन 1100 से 1400 मिलीमीटर बारिश होती है. लेकिन यह बारिश जमीन के भीतर तक कोई असर नहीं डाल पाती है, क्योंकि अब तो कंक्रीट के जंगल बन रहे हैं. पानी बेकार हो जाता है.
इस बार कई राज्यों को भीषण जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
धनबाद की बात की जाए तो यहां तो जल संकट सालों भर की समस्या रहती है। झरिया कोयलांचल में तो कई कई दिनों तक जलापूर्ति होती नहीं है। बूंद बूंद पानी को लोग तरसते है। पिट वाटर में फिटकरी डालकर लोग काम चलाते हैं। यह स्थिति कोई आज की नहीं है. हर घर जल योजना अभी बहुत सारे इलाकों में पूरी नहीं हुई है। गर्मी अभी शुरू नहीं हुई है, इस वर्ष तो फागुन में भी वर्षा हो रही है ,लेकिन जल संकट का आहट दिखने लगा है. अगर हम नहीं चेते तो बूंद बूंद पानी के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है।
मौसम विभाग ने भी साल 2024 में अधिक गर्मी पड़ने की चेतावनी दी है। ऐसे में देश के कई राज्य भीषण जल संकट का सामना कर सकते हैं। अगर पानी की बर्बादी को अभी नहीं रोका गया तो आने वाले समय में हालात और बदल सकते हैं, जिसका खामियाजा आने वाली पीढ़ी को भुगतना पड़ सकता है। जल संकट के कई वजह हो सकते हैं, लेकिन तालाबों का गायब होना, नदियों का अतिक्रमण करना, पानी का अत्यधिक दोहन, बारिश का पानी भूगर्भ तक नहीं पहुंचाना, समय पर बारिश नहीं होना इसके प्रमुख कारण है। कोयलांचल की लाइफ लाइन दामोदर नदी प्रदूषित नदियों में शुमार है। छोटे-छोटे तालाब लापता हो गए हैं। शहरी इलाकों के तो तालाब अब पूरी तरह से भर गए हैं। पहले जब कोयले से रेल इंजन चलते थे तो प्रमुख रेलवे स्टेशन के अगल-बगल रेलवे तालाब तैयार होता था। उन्हें पोषित करता था। लेकिन वह तालाब भी अब धीरे-धीरे अतिक्रमित किए जाने लगे हैं। ऐसे में तालाबों की संख्या लगातार घट रही है। महापर्व छठ के समय सबों को नदी तालाब और उसमें प्रदूषण की याद आती है, लेकिन उसके बाद सब कुछ भुला दिया जाता है।
कहीं बेंगलुरु की तरह नहीं हो जाए झारखंड का हाल
चिंता इस बात की है कि झारखंड का हाल भी कहीं बेंगलुरु की तरह नहीं हो जाए। आंकड़े बताते हैं कि भारत में 35 करोड लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिलता है। 2040 तक दुनिया में हर चार में से एक बच्चा अत्यधिक जल संकट वाले क्षेत्र में रह रहा होगा। यानी दुनिया भर में बचपन जल संकट के कारण संकट में होगा। जयपुर, इंदौर जैसे 30 भारतीय शहर गंभीर जल संकट के मुहाने पर होंगे। बेंगलुरु में इस साल भी नलों से जल आपूर्ति न होने की स्थिति के करीब है। भारत की गिनती दुनिया में सबसे ज्यादा भूजल का दोहन करने वाले देश के रूप में होती है। देश की लगभग आधी आबादी किसी न किसी रूप में जल संकट का सामना कर रही है। हालत गंभीर हैं, जल संकट से निपटने के लिए सरकारी योजनाओं में तेजी की जरूरत है। भूगर्भ जल का स्तर बढ़ाने के लिए ग्राउंड जीरो पर काम करने की जरूरत है, अन्यथा झारखंड का भी हाल बेंगलुरु जैसा होने में बहुत वक्त नहीं लगेगा.